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Monday 6 August 2012

हर दिन बिकती है सैकड़ों किलो सुपारी !!!



कोई खाना खाने के बाद मुंह का स्वाद बदलने के लिए सौंफ सुपारी खाता है तो किसी को सकेला का स्वाद बड़ा भाता है। खासतौर से जिस तरह पुरुषों को गुटके की तलब लगा करती है, उसी तरह महिलाएं सुपारी की दीवानी होती हैं। करंट हो या रसगुल्ला या फिर खस सुपारी...। अपने शहर में बिकने वाली सुपारी की बात ही अलग है। यही वजह है कि भले ही पाउच में बिकने वाली सुपारियों ने सुपारी जगत में अपनी घुसपैठ कर ली है लेकिन खुली बिकने वाली सुपारी का डंका सुपारी जगत में आज भी बज रहा है। 


हमारे शहर की छोटी सी दुनिया में कई चीजें ऐसी हैं जिनका जिक्र किए बिना शहर की बात अधूरी सी लगती है। एक ऐसी ही चीज है सुपारी। देखने में यह भले ही छोटी सी लगती है लेकिन इसकी खुश्बू और मिठास ने शहर को खास पहचान दी है। कानपुर के बाद देश में आगरा एकमात्र ऐसा शहर है जहां से देश के कई शहरों में मीठी सुपारी सप्लाई की जाती है। शहर में सुपारी का काम पचासियों साल से हो रहा है। खासतौर से चित्तीखाना सुपारी का एकमात्र थोक बाजार बना हुआ है। यहां स्थित आठ-दस दुकानों पर हर तरह की सुपारी बिकती है। यहां से प्रतिदिन करीब 100 किलो मीठी व फीकी सुपारी अन्य शहरों में भेजी जाती है। 25 साल से सुपारी के काम में लगे अमित बताते हैं कि वर्तमान में चित्तीखाना में तकरीबन 50 तरह की मीठी सुपारियां बिकती हैं। इनमें करंट, सकेला, सौंफ मिक्स, इलायची वाली, चिकनी, लच्छा सुपारी, रसगुल्ला, मेवा मिक्स, खस, खजूर सुपारी, छुआरा सुपारी, दूध मिक्स आदि प्रमुख हैं। खस सुपारी सबसे महंगी है। इसकी कीमत 2000 रुपये किलो है है वहीं अन्य सुपारियों की कीमत 250-300 रुपये किलो हैं। 

ऐसे तैयार होती है सुपारी 

सुपारी पेड़ का एक फल होता जो मुख्यत: केरल तथा आसाम में पैदा होता है। यहां से साबुत सुपारी नागपुर, इंदौर और ग्लावियर पहुंचती है। ये तीनों मंडिया सुपारी की मुख्य मंडी कहलाती है। इन मंडियों से सुपारी विक्रेता थोक में सुपारी खरीदते हैं। साबुत सुपारी की कीमत 180-190 रुपये किलो है। आगरा में लाकर इन्हें भूना जाता है। फिर काटा जाता है। अंत में इन्हें अलग-अलग साइज में तैयार किया जाता है। जो लोग फीकी सुपारी खाने के शौकीन होते हैं, उनके लिए फीकी सुपारी अलग कर दी जाती है, बाकी सुपारी में खुश्बू व फ्लेवर डालकर मनपसंद सुपारी तैयार की जाती है। अमित बताते हैं कि सुपारी तैयार करते समय मुख्यतौर पर चीनी, फ्लेवर व पीपरमेंट डाला जाता है। खाने वाले रंग डालकर इन्हें लाल, पीला बनाया जाता है।

कन्नौज से खरीदी जाती है खुश्बू

सुपारी के कद्रदान सुपारी की महक सूंघकर आप पता लगा लेते हैं कि ये सुपारी कौन सी है। लेकिन, दुकानवालों को यह महक बहुत महंगी पड़ती है।  सुपारी में डाली जाने वाली खुश्बू कन्नौज से आती है। इस खुश्बू की कीमत 1500 रुपये प्रति किलो से शुरू होकर पांच-दस लाख रुपये प्रति किलो तक पहुंचती है। खस सुपारी में एक लाख रुपये प्रति किलो की खुश्बू डाली जाती है, यही कारण है कि यह सुपारी अन्य सुपारियों की तुलना में महंगी होती है। यह खुश्बू (इत्र) पेड़ से निकाला जाता है।


कहां जाती है सुपारी

मुंबई
दिल्ली
धुलिया
सहारनपुर
बनारस
बरेली

बाहर है इन सुपारी की डिमांड

मिक्सचर
लच्छा सुपारी
मावा मिक्सचर
सौंफ मिक्सचर

पाउच के चलते आधी हुई बिक्री

जबसे सुपारी पाउच में बिकना शुरू हुई हैं, खुली सुपारी की बिक्री आधी रह गई है। पूर्व में जहां 200-250 किलो सुुपारी रोज बिक जाया करती थी वहीं अब पाउच के आने से यह प्रतिदिन 100 किलो पर अटक गई है। बिक्री घटने का एक अन्य कारण खुली सुपारी की कीमतें बढ़ना है। आज से दो साल पहले जहां इनकी कीमत 150 रुपये किलो हुआ करती थी वहीं अब 300 रुपये किलो पहुंच गई है। इसके अलावा खुली सुपारी हर जगह नहीं मिलती जबकि पाउच जगह-जगह पर उपलब्ध होते हैं।

ज्यादा सुपारी खाना लाता है तोतलापन

यूं तो सुपारी स्वाद के लिए खाना नुकसान नहीं करता है लेकिन अगर इसकी अति कर दी जाए तो यह काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है। ज्यादा सुपारी खाने से तोतलापन आता है। साथ ही इसे तैयार करने में कुछ चीजें ऐसी डाली जाती हैं जो स्वास्थ्य के लिए सही नहीं हैं।

सकेला हमेशा से रही है डिमांड में

लोगों के मुंह भले ही पाउच वाली सुपारी लग चुकी हो लेकिन एक बार जो सकेला का स्वाद चख लेता है, वह उसका मुरीद हो जाता है। यही कारण है कि शुरुआत से अब तक सकेला सुपारी की बिक्री सबसे ज्यादा होती है। सकेला के बाद करंट सुपारी भी काफी लोग खरीदते है।

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